रविवार, 23 नवंबर 2008

राजस्थानी कहानी




हरी बत्ती - लाल बत्ती
- मेहर चन्द धामू


अनुवाद- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा
अड्डे पर बस क रुकते ही उसमें से चार-पांच जने उतरे तो कई चढ़े भी। बस अड्डे पर रौनक कुछ कम हो गई परन्तु अब भी 15-20 लोग मौजूद थे। कुछ दुकान व ढ़ाबे वाले तो कुछ आने वाली बस के इन्तजार में खड़े थे। कुछ बातों और मौज-मस्ती के लिए भी वहां उपस्थित थे। बस से दो यात्री उतरे, जो पुलिस की भाषा में संदिग्ध से लगते थे और ग्रामीण नजरों में सामान्य से लगते थे। बस से उतरते ही उनकी भाषा से लगा कि वे किसी परेषानी में है।रुप ने अपने साले से कहा -Þकाफी बड़ा गांव है, पूछना पड़ेगा।ßÞपूछने में कौन से पैसे लगते हैं। घर जल्दी मिल जाएगा और सामने वाले की योग्यता और व्यवहार का पता भी लग जाएगा। जितनी जानकारी उतनी ही काबिलियत। एक तीर से दो षिकार। परख मुफ्त में हो जाएगी।ßअड्डे का जायजा लेकर उन्होंने एक भले से दिखने वाले आदमी पर नजरें जमाई। रुप ने कहा- Þ राम-राम सा।ßराम-रम्मी का यहां राम से कोई लेना-देना नहीं है। अनजान व्यक्ति से बात षुरु करने और उसका चेहरा देखने का यह एक बहाना मात्र होता है। वह व्यक्ति रुप की मंषा जान गया। मुस्कराते हुए तपाक से बोला- Þराम ही राम सा ! फरमाईए।ßÞजी ! हमे बेगराज चोटिया के घर जाना है। घर नहीं जानते।ßÞओह , बेगराज चोटिया के यहां।Þ उन दोनों को ऊपर से नीचे तक देखते हुए वह फिर बोला- Þघर काफी दूर है। समूचा गांव चीरना पड़ेगा। रास्ते में कई गली व मोड़ आएगे। ßइधर-उधर देखते हुए- Þयहां से कोई उस तरफ जाता हुआ भी नहीं दिखता, सुविधा हो जाती। ख्ौर ! आप ऐसा करें, यह गली पकड़ लें।ß अंगुली से इषारा करते हुए उसने बताया- Þजहां आपको कोई षंकां हो वहां पूछ लेना। पूछने में कोई लगान नहीं लगता। अच्छा सा, मेरी बस आ गई। आप भी रास्ते पर चल पड़िए।मरब्बा भर चले होंगे। गली चौराहा बन गई। नुक्कड़ की दुकान पर दुकानदार से पूछना पड़ा। दुकानदार ने कहा - Þघर तो बहुत दूर है।ß दुकानदार ने इधर-उधर देखा और आवाज दी- Þअरे पप्पू ! इधर तो आ।ß आठ -दस साल का एक लड़का पास आ कर बोला- Þक्या कह रहे हो ?ß इन मेहमानों को बेगराज भाई साहब के घर छोड़ आ। अकेलों को परेषानी होगी।ßÞमैं तो घर ही नहीं जानताßÞघर मैं बताऊ¡ÞÞरहने दो, क्यों बेचारे बच्चे को तंग कर रहे हो।Þ रुप ने टोका।Þइसमें क्या तंग होना ? बच्चे का मन बहल जाएगा और आपका काम बन जाएगा।Þखेलने दीजिए, बच्चा है। हम आगे और पूछ लेंगे। यहीं से रास्ता बता दीजिए।थोड़ा और चले। चौराहा तो नहीं चौगान आ गया। फिर मुसीबत खड़ी हो गई। इधर उधर देखा।सामने चबूतरे पर एक जवान बैठा था। करीब जा कर पूछा तो वह बोला- Þओ हो तो आपको बेगराज ताऊ के घर जाना है ?ÞÞहां सा !ßÞ आइए बैठिए , मैं पानी लेकर आता हूं। पानी पीजिए तब तक मेरी मां नोहरे से आ जाएगी और मैं खुद आपको ताऊजी के घर पहुंचा दूंगा।Þनहीं-नहीं ... इतनी तकलीफ मत कीजिए। हम चलें जाएंगे। आप केवल रास्ता बता दीजिए।ÞÞघर बहुत दूर है। आप भटक जाए¡गे। पांच मिनट की तो बात है। मां आती ही होंगी।ßÞरहने दीजिए, क्यों परेषान होते है। हम बच्चे थोड़े ही है। केवल रास्ता बता दीजिए, बहुत होगा।Þ खूब मिन्नत करने पर ही उसने पीछा छोड़ा और रास्ता बताया।अड्डे से चौराहा और चौगान जितनी दूर फिर चलें होंगे कि गुवाड़ आ गया। सामने दो रास्ते। फिर पूछना जरूरी हो गया। गुवाड़ में भी सूनापन दिखा। कोई बच्चा या बड़ा नजर नहीं आया। एक घर के दरवाजे से सटी बैठक खुली थी। निकट पहुंचे । बैठक में कुछ लोग ताष खेल रहे थे। एक व्यक्ति जो घर का मुखिया लग रहा था, उससे पूछा। उत्तर मिला - Þआइए-आइए, बैठिए। हुक्का पीजिए।ßÞजी हमें केवल यह बता दें कि कौनसी गली जाएगी।ßÞपहले बैठिए तो सही। गली नहीं, घर बताएंगे। बताएंगे ही नहीं पहुंचा कर आएंगे।Þजी केवल गली बता दीजिए।ßÞआपकी मजीZ। अरे ओ अजिया, इन मेहमानों को तुम्हारे चाचा चोटिया सा के घर पहुंचा आ। और सुन, तुम्हारे ताऊजी घर पर नहीं हो तो मेहमानों चाय-पानी पिलाने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है।ßआदेष सुनते ही लड़का साथ चल पड़ा।घर पहुंचे। बेगराम जी घर पर मिले अर खूब आदर सत्कार किया। रात भर रुके। जमकर सेवा चाकरी हुई। मान-मनवार भी भरपूर। कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी। सुबह इजाजत मांगी।तड़के पानी की बारी भी। दोनों बेटो को खेत भेज दिया। मेहमानों को खेत देखने का न्यौता दिया। मेहमानों को रवाना होने की जल्दी थी। उधर पानी लगाने का वक्त हो रहा था। बेगराज बोला-Þमैं पानी लगा दूंगा और आप खेत देख लेना। लौटते हुए आपको बस तक छोड़ दूंगा।ßÞआप नििष्ंचत होकर पानी लगाइए। हमारी चिन्ता मत कीजिए। हम बच्चे नहीं हैं। अड्डे पहुंच जाएंगे। पानी की बारी लम्बे इन्तजार के बाद आती है इसलिए बहुत जरूरी है।ß रुप ने समझाया।बेगराज खेत की तरफ और मेहमान बस अड्डे की ओर चल पड़े।बेगराज आषंकित था। वो मेहमानों को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था। उसके दोनों बेटे विवाह लायक थे। कहीं से भी रिष्ते नहीं मिल रहे थे। जैसे दिन गुजर रहे थे वैसे बात कठिन हो रही थी। वहीं मुिष्कल से ये मेहमान आए है। कोई इनको बीच में बिदका न दे। वह सावधानी बरतना चाहता था परन्तु मेहमानों की जिद के सामने उसे झुकना पड़ा।म्ेहमानों को भी अब धीरज नहीं था। आपस मेें बात करने के लिए उनका पेट फूल रहा था। वे भी मौका देख रहे थे। अकेलापन पाते ही किषन ने पूछा- Þयह रिष्ता किसने बताया ? घर -बार तो ठीक लगा।ßÞचाहे कोई बताए लेकिन मुझे पसन्द आ गया। और तुम्हे !ßÞपसन्द तो आना ही है। वैभव की बात दीवारें कह देती है। कितना बड़ा गांव है और कोई द्वेषी नहीं। सब हितैषी ही हितैषी। आदमी सुलझा हुआ लगता है। गांव में अच्छी इज्जत है। जो भी मिला वो मान-सम्मान के लिए आतुर है। इतने आदर व मनुहार के लिए भला किसके पास वक्त है। दुनियां देखी है। सब लोग बचते फिरते है। और यहां बेगराज का नाम सुनत ही सामने वाले के घुंघरू बंध जाते है। खुद तकलीफ उठा कर दूसरे का काम साधना यूं ही तो नहीं होता। आदमी काबिल है और लड़के भी सुन्दर व समझदार है।सुनी-परखी और आंखों देखी में तो कहीं भी कमी नहीं दिखती। आगे बेटियों का भाग...।Þरुप बोला-Þयह तो सब ठीक है पर हम बेगराज के पसन्द आएंगे कि नहीं, क्या पता।ß बातों ही बातों में गुवाड़ आ गया। आते वक्त हुक्का पीने की मनुहार करने वाला हुक्का भरे तैयार बैठा था। बोल पड़ा- Þबेगराज घर पर मिला कि नहीं ?ßÞहां सा।ß किषन ने बताया।Þमिलनें को तो वो जाता कहां है। घर तो छोड़ता ही नहीं और छोड़े भी कैसे ? बिचारे की मजबूरी है घरमें औरत का राज है। वो कहे वैसे ही पांव धरना पड़ता है।ß बेषमीZ की हंसी के साथ वह बोलत गया-Þ आइये, अब तो हुक्का पी लीजिए।अब क्या जल्दी है ?ßजल्दी तो है ही ß रुप ने कहा।Þजीतेजी ऐसा ही होगा। आइये, दो मिनट बैठिए। ज्यादा जल्दबाजी भी ठीक नहीं होती । सोच विचार कर काम करना ठीक होता है।ßगुवाड़ वाला दोस्त थोड़े में ही बहुत कुछ कह गया। दोनों में मन मे षक के कीड़े जग गए- उसकी घरवाली को तो परखा ही नहीं। सासू तो मिट्टी की ही खराब होती है। घर में जब औरत की चलती है और वहीं अच्छी नहीं हो तो लड़की के लिए मुसीबत ।यहां से पीछा छुड़ा कर आगे बढ़े तो चौगान वाला जवान तैयार खड़ा था। देखते ही बड़बड़ाने लगा-Þरात तो फिर दारु के जाम टकराए होंगे। ना-ना दारु तो वहां कहां होगा। वो तो लोगो की ही पीना जानता है। दूसरों की जेब से ही मदमस्त बनता है। ख्ौर जाने दो। आपको कहां होगा, मैं पीता ही नहीं। झूठ बोलने में बड़ा माहिर है। घर ठीक से पहुंच गए थे ना ?ßदूसरा कीड़ा कुलबुुलाया- दारुखोर के तो दषZन ही खोटे।उस जवान की बात अभी कानों में गूंज ही रही थी कि चौराहा आ गया और उनको देखकर दुकानदार भी बजने लगा। Þदुकानदारी का धंधा । ग्राहक के हिसाब से देखे तो वक्त और जुबान का बिलकुल ही कच्चा है। बातों में न आ जाना वरना तंग होना पड़ेगा।ßकानों में अंगुली तो नहीं दी जा सकती इसीलिए ये बातें भी सुननी पड़ी। रुप के मन मे ं बेगराज के घर जाते वक्त जो विष्वास जगा था वह बस अड्डे तक पहुंचते पहुंचते बिलकुल मिट गया। घर जाते वक्त जो भी मिला उसने हरी बत्ती दिखाई और आते वक्त सबने लाल। जाते समय सब बेगराज को गुणों की खान बता रहे थे और वापसी के इषारे उसके गुणों के कपासिये उड़ा रहेे थे।ऐसी हालत में खुद की बेटी का रिष्ता करना तो दूर दुष्मन को बताना भी पाप लगता है। दोनों मायूस चेहरे लिए बस का इन्तजार कर रहे थे और किषन अपने विचार बता रहा था। रुप का ध्यान किषन पर नहीं था। वह इस घटना पर गहराई से मंथन कर रहा था। सड़क होगी तो सिग्नल होगा ही। हरी बत्ती तो षुभ संकेत है। धीमे-धीमे आगे बढ़ो। लाल बत्ती खतरे का संकेत होती है। हरी पर लाल भारी है। लेकिन अब बारी..........।


Þबस आ गई ß किषन ने कहा।

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है, ढेरों शुभकामनायें… सिर्फ़ एक अर्ज है कि वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें, फ़िलहाल हिन्दी चिठ्ठाजगत में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है… लिखते रहें… कुछ अक्षर कटे-कटे से आ रहे हैं कृपया इसे भी देखें…

हिन्दीवाणी ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई। समय निकालकर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें।

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

एक निवेदन: कृप्या वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें तो टिप्पणी देने में सहूलियत होगी.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दे
प्रदीप मानोरिया
09425132060

संगीता पुरी ने कहा…

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे..... हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।